Bikshuk kavita ka sandesh

Bikshuk kavita ka sandesh

भिक्षुक

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

प्रस्तुत कविता में कवि ने एक भिक्षुक का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। भिक्षुक कविता में निराला उस उपेक्षित वर्ग को अपनी समस्त करुणा समर्पित करते हैं जिन्हें समाज व्यक्ति मानने की भी इच्छा नहीं रखता।भिक्षुक इतना कमजोर है कि उसका पेट और पीठ मिलकर एक हो गए हैं। मुठ्ठी भर दानों को पाने के लिए वह फटी-पुरानी झोली फैलाता है। उसके साथ दो बच्चे भी हैं जो एक हाथ से भूख से पेट को मल रहे हैं और दूसरे हाथ से भीख माँग रहे थे। सड़क पर पड़ी जूठी पत्तलों से वे भूख मिटाने का प्रयास करते हैं पर वहाँ भी उनका दुर्भाग्य उनका साथ नहीं छोड़ता। वे पत्तलों पर कुत्ते झपट पड़ते हैं। निराला उनकी स्थिति को देखकर अति दुखी हैं। एक ओर पूँजीपति वर्ग की आकाशचुम्बी अट्टालिकाएँ दूसरी ओर किसी को भोजन तक न न मिल पाने की स्थिति कवि को क्रोधित करती है। यहाँ पर कवि ने भिक्षुक को अभिमन्यु की तरह संघर्ष करने की प्रेरणा दी है।